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Wednesday 7 March 2018

महिला दिवस विशेष: अगर ये न होतीं तो मैं न जाने कहां और क्या होता?

नारी, तुम्हारे किस रूप की व्याख्या करूं,
मां...
बहन...
पत्नी...
बेटी...
या फिर दोस्त...

नारी के बिना नर ही अधूरा नहीं, बल्कि ये संसार और समाज भी कभी पूरा नहीं हो सकेगा। यही वजह है कि नारी पूरे जीवन किसी न किसी रूप में साथ ही रहती है, बचपन में मां बनकर, उसके बाद बहन बनकर, फिर पत्नी बनकर हर कदम पर साथ निभाती है। इसके अलावा भी कुछ ऐसे रिश्ते हैं जो पुरूषों को नारी शक्ति होने का एहसास कराते रहते हैं, वैसे भी हर किसी के जीवन में महिला का योगदान पूरी उम्र रहता है बस समय के साथ रिश्तों में बदलाव आता रहता है।
ऐसा ही एक रिश्ता हमारे जीवन का भी टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। जब हमारी बड़ी बहन #manju_agrahari ने ये कहते हुए मुझसे सारे रुपए छीन लिये कि पाई-पाई का हिसाब रखो और जहां 1000 रुपए का काम हो वहां भी कटौती करके ही देना, उसके पीछे तर्क ये था कि 1000 के बदले 1100 देने पर भी उतना ही काम होगा और 900 देने पर भी वह काम रुकेगा नहीं। इस फॉर्मूले पर जो मैं आगे बढ़ा तो फिर कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा। जीवन में कई ऐसे दौर भी आए हैं, जब नारी शक्ति ने मुझे खुद के होने का एहसास कराया है। मेरी मझली बहन #parvati का भी कम योगदान नहीं रहा। 

एक करोड़ की नौकरी छोड़ शिक्षा की अलख जगाने निकले हैं पूर्वांचल के सपूत 

कहते हैं कि बहन से बड़ा कोई शुभचिंतक नहीं होता, ये लाइन मेरी छोटी बहन +Priyanka Gupta पर बिल्कुल सटीक बैठती है क्योंकि जब भी मैं देर रात घर लौटता था, मेरी आवाज सुनते ही उसकी नींद उड़न-छू हो जाती थी, वैसे तो मां-पिताजी चिल्लाते रहें पर उसकी नींद तो कुंभकर्ण से भी गहरी थी, जो खुलने का नाम नहीं लेती, पर मेरी आवाज कानों में पड़ते ही अगले पल वह किचन में नजर आती, रात चाहे कितनी ही क्यों न बीत गई हो, खाना है तो ठीक नहीं तो खाना पकाना शुरू। हालांकि, मेरा भी जब घर जाना होता था तो मैं खाना घर पर ही खाता था, मेरी बहन को ये बात पता थी, इसके अलावा भी वह हर चीज पर नजर रखती थी, जैसे कपड़ा साफ करना और प्रेस करना। हां, एक आदत उसकी और भी थी, जो मुझे बहुत प्रभावित करती थी, मैं जब भी परदेस जाता, मेरे किसी पैंट या शर्ट की जेब में जो भी उसके पास रुपए होते थे वह उसमें चुपके से रख देती थी, जो कई बार मेरे मुश्किल दौर में काम आता था और हां, एक मेरी छोटी बहन ही है जो मेरे चेहरे को ठीक से पढ़ पाती है। बाकी तो अब तक कोई भी नहीं पढ़ सका, यहां तक की मेरी मां और मेरी अर्धांगिनी भी नहीं।

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इस बीच 10 दिसंबर 2013 को जिंदगी की एक नई शुरूआत हुई, जब 'MY BETTER HALF' #jyoti मेरे जीवन में उजाला बनकर आई और हमेशा के लिए मेरी बनकर रह गई, तब से थोड़ी-बहुत नोक-झोक के बीच जिंदगी की गाड़ी पटरी पर दौड़ रही है और अब तो एक बेटी भी है जोकि ढाई साल की हो चुकी है। हालांकि, पत्नी कभी उतनी याद नहीं आती थी, जितनी बेटी याद आती है, कभी-कभार तो ऐसा लगता है कि पैसा कमाने के चक्कर में बहुत कुछ गवां दे रहा हूं और जो गवां रहा हूं, उसे बाद में कमा भी नहीं सकता क्योंकि बेटी का न तो बचपन देख पा रहा हूं और न ही उसे बड़ा होते देख पा रहा, न उसे सीने से लगाकर उसके सिर पर हाथ फेर पा रहा हूं, 4-6 महीने में 15 दिन की छुट्टी मिल भी जाती है तो चार दिन आने-जाने में गुजर जाते हैं और जब तक बेटी घुलना-मिलना शुरू करती है, तब तक काम पर लौटने का वक्त हो जाता है, जिससे उसे बाप का प्यार भी नसीब नहीं हो पा रहा है। हां, जरूरतें उसकी बेशक पूरी हो रही हैं, लेकिन खुशियों की कीमत पर।

गाजियाबाद में जब पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था, उस वक्त महिला सहपाठियों का भी योगदान कम नहीं रहा क्योंकि तब तक मैं मनोरंजन की दुनिया से अनजान था, तब मेरी महिला सहपाठियों ने मुझे मनोरंजन की दुनिया से रूबरू कराया और मैं भी फिल्में देखने और गाने सुनने में दिलचस्पी दिखाने लगा। हालांकि सभी सहपाठियों से अच्छी मित्रता भी रही, पर +Deepika Mishra ने तो मुझसे किसी को नहीं रोकने-टोकने की कसम दिला दी क्योंकि मेरी आदत थी बात-बात पर रोकने-टोकने की। जो हर किसी को अच्छा नहीं लगता था, तब दीपिका ने कहा था कि जो तुम्हारी बातों पर अमल करे, उसे ही बोलो, बाकी को जाने दो।

इसके अलावा क्रिसमस-डे पर +Chhavy Singh ने जो गिफ्ट दिया था, उस पैकिंग पर लिखा संदेश आज भी मेरी डायरी में पड़ा है। गाहे-बगाहें उस पर नजर पड़ ही जाती है, जो बरबस ही पुराने दिनों की याद दिला देता है। इसके अलावा भी एक महिला मित्र है, जिसके नाम का मैं यहां जिक्र नहीं कर सकता। पर हां उसको कभी भूल भी नहीं सकता क्योंकि जब मैं पूरा देहाती था, तब उसने हमे शहरी बनाने की जिद की थी, तब मैं पहली बार जींस और टी-शर्ट पहना था। जिसे वह मेरे लिए खरीद कर लाई थी।

उसके अलावा मेरे दोस्त की पत्नी #pratima_gupta ने पहली मुलाकात में शिक्षा को लेकर इस कदर पूछ-परख की कि सारी हेकड़ी अगले पल गायब हो गयी क्योंकि प्रतिमा से हम तीन दोस्तों की पहली मुलाकात थी और पहली ही मुलाकात शायद किसी इंटरव्यू से कम नहीं था, तब हम लोगों ने फिर ठान लिया कि अब पढ़ाई आगे भी करनी है, नहीं तो शिक्षा के बिना अपना संसार अधूरा रह जाएगा और हमने फिर से कोशिशें शुरू की और स्व-रोजगार के साथ ही शिक्षा के लिए प्रयासरत रहने लगा, तब जाकर सरकारी कॉलेज में पत्रकारिता के कोर्स में दाखिला मिल पाया और पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी करने के बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से शुरू सफर अब (ईटीवी भारत) की डिजिटल दुनिया तक पहुंच गया है, जहां पिछले दो साल से अधिक समय बीत चुका है। आगे का सफर भी अभी हैदराबाद में ही जारी है।

दोस्त तो कई और भी मिले क्योंकि 22 साल से परदेसी बने रहने का सिलसिला जो जारी है, इस दौरान साल के साथ-साथ कई शहर भी बदले, लोग मिले भी, बिछडे़ भी, जिसमें से कुछ आज भी दिल में बसते हैं, उनमें से कुछ की कहानी भी ऐसी है जो कभी जेहन से निकल ही नहीं सकती, ऐसे में गुड़गांव में मुलाकात हुई #anamika_pandey से और हैदराबाद में मिली #neelam_tripathi। दोनों की उम्र हमसे तो कम ही है, पर उनकी कुछ कहानियों का मेरे उपर गहरा असर पड़ा।

नारी से नर होत हैं, नारी नर की खान।
नारी से ही जनम लेत हैं भक्त और भगवान।।

हालांकि 5वीं क्लास से ही मेरा संघर्ष शुरू हुआ और 9वीं के बाद घर छोड़ना पड़ गया, जिंदगी का ये सफर अविभाजित बिहार के पाकुड़ जिले से मार्च 1997 से शुरू होकर कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, नोएडा, ग्वालियर, भोपाल, राजपुरा (पंजाब), रोहतक (हरियाणा), गुड़गांव होते हुए अब हैदराबाद पहुंच गया है। इस दौरान भी कई अच्छे-बुरे लोग मिले, जिनमें से कुछ यादें तो सांसों के साथ ही खत्म होगी। पर कुछ यादें ऐसी भी हैं जिसने जिंदगी को और आसान कर दिया।
आठ मार्च (बुधवार) को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है, ये दिन महिलाओं के सम्मान को समर्पित है,  सन 1908 में 15,000 महिलाओं ने न्यूयॉर्क सिटी वोटिंग अधिकारों, बेहतर वेतन और काम के घंटे कम करने की मांग को लेकर मार्च निकाला, जिसके एक साल बाद अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी ने सन 1909 में 28 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया। जिसे सन 1910 को कोपनहेगन में मनाया गया। सन 1911 को ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में लाखों महिलाओं ने रैली निकाली। मताधिकार, सरकारी कार्यालयों और नौकरी में भेदभाव को खत्म करने जैसे कई मुद्दों की मांग को लेकर इस दिन का आयोजन किया जाता है।

5 comments:

  1. अद्भुत लेखन शैली है आपकी जब लेख पढ़ा तो आने वाली हर लाइन में जिंदगी की गहराई से परिभाषा प्रताप हुई आपकी जिंदगी, एक ऐसी जिंदगी है जिसे कोई शब्द नहीं दे सकता इस जिंदगी को तो महसूस ही किया ज सकता है , इस लेख को पढ़ने के बाद मुझे आपकी जिंदगी का अहसास हुआ है, आप दिल बाकई खुला और साफ है । ✍️✍️✍️👌👌👌

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  2. बहुत सही कहा भीम भी आपने खुशियों की कीमत पर बच्चों, घरवालों की ज़रूरत पूरी हो रही हैं। जो वक़्त हमें अपने घरवालों के साथ गुज़ारना चाहिए था वो समय दहाड़ी में गुज़र रहा है, इस उम्मीद के साथ कि आने वाला कल कुछ अच्छा लेकर आएगा।

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  3. सर्, नमस्ते सबसे पहले आपको तहे दिल से शुक्रिया। आपके द्वारा लिखा गया लेख जितना एक महिला के सम्मान को बढ़ाता है, उतना ही स्वंय के आत्मीयता को दर्शाता है। मैं बताना चाहूं कि मैं भी आपके ही तरीके से एक पत्रकार हूं, यहां मैं एक बात अवश्य कहना चाहूंगा कि आपकी लेखन शैली ने कुछ देर के लिए सोचने को मजबूर कर दिया। क्योंकि आपके एक-एक शब्द में वह एहसास है जो कि किसी को भी जीवन के गहराईयों का एहसास अवश्य करा देगा।
    मैं ईश्वर के आपके उज्ज्जवल भविष्य की कामना करता हूं।

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  4. क्या बात लिखी है सर अपने आपकी एक एक बात को ध्यान से पढ़ा शायद जितनी मेरी उम्र नही है उससे ज्यादा तो आपका संघर्ष है आपके जीवन के बारे में पढ़कर मुझे बहुत प्रेरणा मिली है मुझे तो लगता था कि जल्द ही लोग आगे बढ़ जाते है लेकिन आपका एक एक शब्द प्रेरणा देता है जीवन जीने की और हा कहते है समस्या का ही तो दूसरा नाम जिंदगी है आपके संघर्ष और उस संघर्ष को शब्दों में व्यक्त करना मुझे एक सफल पत्रकार के पीछे के संघर्ष को बता गया प्रयास जारी रहेगा आपके जैसे बनाने का

    प्रिंस छतरपुर मध्यप्रदेश

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    1. पढ़ने सीखने और भुगतने में बहुत फर्क होता है, पढ़ा हुआ ज्ञान अर्जित करता है, सीखा हुआ याद्दाश्त और भुगता हुआ बार बार उस परिस्थिति को महसूस करता है, खासकर तब जब उसकी नज़रों के सामने वैसा मंजर आता है। परिस्थितियों को जीवंत बनाने के लिए शब्दों को पिरोना वो कला है, जो शब्दों में जिंदा होता है।

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