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Monday 19 March 2018

अविश्वास प्रस्ताव से सरकार को नहीं पर मोदी की साख को खतरा!

25 मई 2014 को प्रचंड बहुमत और अति आत्मविश्वास से लबरेज राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की तरफ से नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इस आम चुनाव में मोदी की लहर नहीं बल्कि सुनामी आई थी, जिसमें कई दलों की जमानत तक जब्त हो गयी। पर कहते हैं कि ऊंचाई पर पहुंचने से ज्यादा वहां बने रहने की चुनौती होती है, जो इस चुनौती का सामना नहीं कर पाता, वो अगले ही पल ऊंचाई से नीचे लुढ़क जाता है और तब जितनी अधिक ऊंचाई होती है, उतने ही नुकसान की संभावना बढ़ जाती है। ऐसा लगता है मौजूदा मोदी सरकार के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है क्योंकि भले ही अविश्वास प्रस्ताव से मोदी सरकार को कोई खतरा नहीं हो, पर विश्वास भी अब पहले जैसा नहीं रहेगा और यही अविश्वास प्रस्ताव विरोधियों को एकजुट करने और उनमें जान फूंकने के लिए संजीवनी भी साबित होगी।

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मोदी सरकार के अभी चार साल पूरे होने में दो माह पांच दिन शेष है, उससे पहले सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आने वाला है, हालांकि सोमवार को लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश नहीं हो सका और मंगलवार तक के लिए लोकसभा और राज्यसभा स्थगित कर दी गई। पर सवाल अब ये उठता है कि आखिर इतने कम समय में ही सरकार के खिलाफ इतना अविश्वास पनपा क्यों? क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव लाने वाली पार्टी कुछ दिन पहले ही मोदी सरकार से तलाक लेकर अलग हुई है। जो अब दूसरा शौहर तलाश रही है ताकि अपनी जरूरतें भी पूरी कर सके और पहले शौहर को सबक भी सिखा सके।

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अब यहां तकनीकी बारीकियों पर भी नजर डालना जरूरी हो जाता है। सबसे पहले तो ये समझना जरूरी है कि अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है? जब लोकसभा में किसी विपक्षी पार्टी को लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है या सदन में सरकार अपना विश्वास खो चुकी है तो वह अविश्वास प्रस्ताव लाती है, अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए विपक्षी पार्टी को कम से कम 50 सांसदों का समर्थन जरूरी होता है, तब लोकसभा अध्यक्ष द्वारा मंजूरी मिलने के बाद सत्ताधारी पार्टी या गठबंधन को यह साबित करना होता है कि उसके पास सदन में जरूरी समर्थन प्राप्त है।

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अब आंकड़ों का गणित देखें तो लोकसभा में तेलगु देशम पार्टी के 16, YSR कांग्रेस के 9 , कांग्रेस के 48, AIADMK के 37, तृणमूल कांग्रेस के 34, BJD के 20, शिवसेना के 18, TRS के 11, CPM के 9, SP के 7, LJP और NCP के 6-6, RJD और RLSP के क्रमशः 4 और 3 सांसद हैं और AIMIM के एक सांसद हैं, ऐसे में ये सभी मिल जाएं तो संसद में अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी जरूर मिल जाएगी। हालांकि, चंद्र बाबू नायडू के इस मास्टर स्ट्रोक से बीजेपी को भी सबक लेते हुए सावधानी बरतनी पड़ेगी, नहीं तो उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा? लिहाजा अब बीजेपी को भी अपने सहयोगियों और अपनी ही पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का विश्वास हासिल करना होगा क्योंकि बड़ी से बड़ी नाव को डुबोने के लिए एक छोटा सा सुराग ही काफी होता है।

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राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के कमजोर हो रहे कुनबे पर यह अविश्वास प्रस्ताव कितना असर डालेगा? बीजेपी 2014 के आम चुनाव में कुल 284 सीटों पर जीत हासिल की थी, हालांकि अब भाजपा के कुल 275 सांसद हैं, जबकि अविश्वास प्रस्ताव खारिज करने के लिए महज 270 सांसदों का समर्थन चाहिए। हालांकि, एनडीए की सहयोगी शिवसेना ने पहले ही साफ कर दिया है कि वह अविश्वास प्रस्ताव में भाग नहीं लेगी।

दरअसल, लोकसभा और राज्यसभा में बैंकिंग धोखाधड़ी और आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग जैसे मुद्दों को लेकर पिछले कई दिनों से गतिरोध जारी है, हालांकि सरकार सदन में बजट के अलावा कुछ और विधेयकों को पारित करवाने में कामयाब रही है, जबकि सरकार अपनी साख बचाने में फिसड्डी साबित हो रही है। उपचुनाव के नतीजे भी सरकार की गिरती साख की गवाही दे रहे हैं।

इससे पहले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी केसरिया पगड़ी उतारकर लालटेन लेकर निकल पड़े, जबकि एमपी, राजस्थान, बिहार और यूपी में हुए उपचुनाव में भाजपा को मिली करारी शिकस्त के बाद बिखराव की आशंका बढ़ गई है क्योंकि इस उपचुनाव में बीजेपी के हाथ से उसका अभेद्य किला जो निकल गया है, गोरखपुर, फूलपुर में साइकिल ने कमल को रौंद दिया तो राजस्थान में भी हाथ ने कमल को मसल दिया, जिसके बाद से सहयोगी दलों को भी अपनी साख बचाने की चिंता सताने लगी है।

खबर है कि लोजपा सासंद चिराग पासवान ने बीजेपी को सहयोगी दलों के साथ बिखराव पर मंथन करने की सलाह दी है, उधर, केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की आरजेडी से नजदीकियों की भी खूब चर्चा हो रही है, जबकि टीडीपी सांसद केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद बीजेपी के खिलाफ सड़क पर आ गए हैं, शत्रुघ्न सिन्हा पहले से ही बागी बने बैठे हैं, खिलाफत के चलते सासंद कीर्ति आजाद को पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है, महाराष्ट्र के बीजेपी सांसद नानाभाऊ पटोले भी कमल का साथ छोड़ हाथ से हाथ मिला लिए, ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव बीजेपी के खिलाफ गोलबंदी को और हवा दे सकता है।

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